बुधवार, 4 जनवरी 2017

मुस्कुराहट - स्वपनिल संसार

अगर आप एक अध्यापक हैं और जब आप मुस्कुराते हुए कक्षा में प्रवेश करेंगे तो देखिये सारे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान छा जाएगी।

अगर आप डॉक्टर हैं और मुस्कराते हुए मरीज का इलाज करेंगे तो मरीज का आत्मविश्वासदोगुना हो जायेगा।

जब आप मुस्कुराते हुए शाम को घर में घुसेंगे तो देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

अगर आप एक बिजनेसमैन हैं और आप खुश होकर कंपनी में घुसते हैं तो देखिये सारे कर्मचारियों के मन का प्रेशर कम हो जायेगा और माहौल खुशनुमा हो जायेगा।

अगर आप दुकानदार हैं और मुस्कुराकर अपने ग्राहक का सम्मान करेंगे तो ग्राहक खुश होकर आपकी दुकान से ही सामान लेगा।

कभी सड़क पर चलते हुए अनजान आदमी को देखकर मुस्कुराएं, देखिये उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी।

मुस्कुराइए, क्यूंकि मुस्कराहट के पैसे नहीं लगते ये तो ख़ुशी और संपन्नता की पहचान है।

मुस्कुराइए, क्यूंकि आपकी मुस्कराहट कई चेहरों पर मुस्कान लाएगी।

मुस्कुराइए, क्यूंकि ये जीवन आपको दोबारा नहीं मिलेगा।

मुस्कुराइए, क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।”

मुस्कुराइए ,क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है।”

मुस्कुराइए, क्योंकि आपकी हँसी किसी की ख़ुशी का कारण बन सकती है।”

मुस्कुराइए, क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते रहते है”
       और सबसे बड़ी बात
"मुस्कुराइए, क्योंकि यह मनुष्य होने की पहली शर्त है। एक पशु कभी भी नहीं मुस्कुरा सकता।”

दोहा छंद

आलेख "दोहाछंद"
"दोहा छन्द"
      दोहा छन्द अर्धसम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में तेरह-तेरह मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं। दोहा छन्द ने काव्य साहित्य के प्रत्येक काल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिन्दी काव्य जगत में दोहा छन्द का एक विशेष महत्व है। दोहे के माध्यम से प्राचीन काव्यकारों ने नीतिपरक उद्भावनायें बड़े ही सटीक माध्यम से की हैं। किन्तु दोहा छन्द के भेद पर कभी भी अपना ध्यान आकर्षित नहीं करना चाहिए।
      सच तो यह है कि दोहे की रचना करते समय पहले इसे लिखकर गाकर लेना चाहिए तत्पश्चात इसकी मात्राएँ जांचनी चाहिए ! इसमें गेयता का होना अनिवार्य है।  दोहे के सम चरणों का अंत 'पताका' अर्थात गुरु लघु से होता है तथा इसके विषम चरणों के आदि में जगण अर्थात १२१ का प्रयोग वर्जित है ! अर्थात दोहे के विषम चरणों के अंत में सगण (सलगा ११२) , रगण (राजभा २१२) अथवा नगण(नसल १११) आने से दोहे में उत्तम गेयता बनी रहती  है!  सम चरणों के अंत में जगण अथवा तगण आना चाहिए अर्थात अंत में पताका (गुरु लघु) अनिवार्य है।
     दोहा की उत्पत्ति संस्कृत के दोधक से हुई है। यह अपभ्रंश के उत्तरकाल का प्रमुख छन्द है। दोहा वह छन्द है जिसमें पहलीबार तुक मिलाने का प्रयत्न किया गया था। कहा जाता है कि सिद्धकवि सहरप ने इस छन्द का सबसे पहले प्रयोग किया था। दोहा और साखी समानार्थक छन्द हैं। सन्त कवि कबीर दास ने अपने दोहों को साखी नाम दिया था। पद शैली के सूरदास और मीराबाई ने अपने पदों में इसका प्रयोग किया है। दोहा मुक्तक काव्य का प्रमुख छन्द है। रीतिकालीन कवि बिहारी लाल ने अपने सतसई साहित्य दोहा छन्द का ही प्रयोग किया है। इस छन्द में लघुचित्रों और भावव्यञ्जना को प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता है। प्राकृत साहित्य में जो स्थान गाथा का है, अपभ्रंश में नही स्थान दोहा छन्द का भी है।
       दोहा छन्द का ताना बाना समझने के लिए यह जरूरी है कि 13,11-13,11 मात्रा के चार चरण, विषम चरणान्त में प्रायः लघु-गुरू, और सम चरणान्त मे गुरू-लघु  तुकान्त का कठोरता से पालन किया जाये।
     काव्याचार्यों ने दोहे की लय को निर्धारित करने के लिए कलों (द्विकल-त्रिकल-चौकल) का प्रयोग भी किया है, जिसकी अपनी सीमाएं हैं। इस पद्धति में 2,3,4 मात्राओं के वर्ण समूहों को क्रमशः द्विकल , त्रिकल , चौकल कहा जाता है l दोहे के चरणों में कलों का क्रम निम्नवत होता है - विषम चरणों के कलों क्रम -
4 + 4 + 3 + 2 (चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल)
3 + 3 + 2 + 3 + 2 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+द्विकल)
सम चरणों के कलों का क्रम -
4 + 4 + 3 (चौकल+चौकल+त्रिकल)
3 + 3 + 2 + 3 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल)
      दोहा या किसी अन्य मात्रिक छंद का निर्धारण करने में जिस मात्रा क्रम का उल्लेख किया जाता है, वह  वस्तुतः ‘वाचिक’ होता है, ‘वर्णिक’ नहीं । वाचिक मात्राभार मे लय को ध्यान में रखते हुये एक गुरु 2 के स्थान पर दो लघु 11 प्रयोग करने की छूट रहती है, जबकि ‘वर्णिक’ भार मे किसी भी गुरु 2 के स्थान पर दो लघु 11 प्रयोग करने की छूट नहीं होती है अर्थात प्रत्येक ‘वर्ण’ का मात्राभार सुनिश्चित होता है।
     चूंकि भारतीय छंद शास्त्र के अनुसार गणों (यगण, मगण आदि) की संकल्पना मे प्रत्येक वर्ण का मात्रा भार सुनिश्चित माना गया है। विषम चरणों की बनावट में जगण का प्रयोग निषिद्ध माना जाता है। लेकिन यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि विषम चरण के प्रारम्भ में जगण का निषेध केवल नर काव्य के लिए है। देवकाव्य या मंगलवाची शब्द होने की स्थिति में कोई दोष नहीं है। साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य  है कि यदि दो शब्दों से मिलकर जगण बनता है तो उसे दोष नहीं माना जाता है- जैसे “महान” शब्द के तीन वर्ण जगण बना रहे है इसलिए यह वर्जित माना जाता है किन्तु जहाँ दो शब्दों से मिलकर जगण आ रहा हो तो यह वर्जित नहीं माना जाता है। विषम चरणों के अन्त में सगण, रगण, अथवा नगण अच्छा माना जाता है। 
अन्त में मेरे भी कुछ दोहे इस विषय में समीचीन सिद्ध होंगे।
देखिए-
तेरह-ग्यारह से बना, दोहा छन्द प्रसिद्ध।
माता जी की कृपा से, करलो इसको सिद्ध।।

चार चरण-दो पंक्तियाँ, करती गहरी मार।
कह देती संक्षेप में, जीवन का सब सार।।

  समझौता होता नहीं, गणनाओं के साथ।
उचित शब्द रखकर करो, दोहाछन्द सनाथ।।

सरल-तरल यह छन्द है, बहते इसमें भाव।
दोहे में ही निहित है, नैसर्गिक अनुभाव।।

तुलसीदास-कबीर ने, दोहे किये पसन्द।
दोहे के आगे सभी, फीके लगते छन्द।।

दोहा सज्जनवृन्द के, जीवन का आधार।
दोहों में ही रम रहा, सन्तों का संसार।।
--

आदरणीय डाक्टर रूपचंद्र शास्त्री जी (whatsapp से प्राप्त)
http://uchcharan.blogspot.in/2016/11/blog-post_18.html

ओशो - तुम्हारा ही खेल है जब चाहो समेट लो

_*तुम्हारा ही खेल है। तुम जिस दिन चाहो, समेट लो*_

तुम जब किसी स्त्री के प्रेम में पड़ते हो तो तुम कहते हो: "स्वर्ण काया! सोने की देह! स्वर्ग की सुगंध!' तुम्हारे कहने से कुछ फर्क न पड़ेगा। गर्मी के दिन करीब आ रहे हैं पसीना बहेगा, स्त्री के शरीर से भी दुर्गंध उठेगी। तब तुम लाख कहो "स्वर्ग की सुगंध,' तुम्हारे सपने को तोड़कर भी पसीने की बास ऊपर आएगी। तब तुम मुश्किल में पड़ोगे कि धोखा हो गया। और शायद तुम यह कहोगे, इस स्त्री ने धोखा दे दिया। क्योंकि मन हमेशा दूसरे पर दायित्व डालता है, कहेगा, यह स्त्री इतनी सुंदर न थी जितना इसने ढंग ढौंग बना रखा था। यह स्त्री इतनी स्वर्ण काया की न थी जितना इसने ऊपर से रंग रोगन कर रखा था। वह सब सजावट थी, शृंगार था भटक गए, भूल में पड़ गए।

स्त्री भी धीरे धीरे पाएगी कि तुम साधारण पुरुष हो और जो उसने देवता देख लिया था तुममें, वह जैसे जैसे खिसकेगा, वैसे वैसे पीड़ा और अड़चन शुरू होगी। और वह भी तुम पर ही दोष फेंकेगी कि जरूर तुमने ही कुछ धोखा दिया है, प्रवंचना की है। और जब ये दो प्रवंचनाएं प्रतीत होंगी कि एक—दूसरे के द्वारा की गई हैं तो कलह, संघर्ष, वैमनस्य, शत्रुता खड़ी होगी। तुम्हारा मन किसी और स्त्री की तरफ डोलने लगेगा। तुम नई खूंटी तलाश करोगे। स्त्री का मन किसी और पुरुष की तरफ डोलने लगेगा। वह किसी नई खूंटी तलाश करेगी।

इसी तरह तुम जन्मों जन्मों से करते रहे हो। लाखों खूंटियों पर तुमने सपना डाला। लाखों खूंटियों पर तुमने अपनी वासना टांगी। लेकिन अब तक तुम जागे नहीं और तुम यह न देख पाए कि सवाल खूंटी का नहीं है; सवाल कामिनी का नहीं है; काम का है। यह तुम्हारा ही खेल है। तुम जिस दिन चाहो, समेट लो। लेकिन जब तक समझोगे न, समेटोगे कैसे? भागना कहीं भी नहीं है; तुम जहां हो वहीं ही अपने मन की वासनाओं के जाल को समेट लेना है। जैसे सांझ मछुआ अपने जाल को समेट लेता है, ऐसे ही जब समझ की सांझ आती है, जब समझ परिपक्व होती है, तुम चुपचाप अपना जाल समेट लेते हो। वह तुमने ही फैलाया था, कोई दूसरे का हाथ नहीं है। कोई दूसरा तुम्हें भटका नहीं रहा है।

सोने का क्या कसूर है? तुम नहीं थे तब भी सोना अपनी जगह पड़ा था। तुम्हारी प्रतीक्षा भी नहीं की थी उसने। तुम नहीं रहोगे तब भी सोना अपनी जगह पड़ा रहेगा।

*सुनो भाई साधो*

*ओशो*

एक दोहे का चमत्कार

एक दोहे का चमत्कार

प्रेरणादायक कहानी

एक राजा था जिसे राज भोगते काफी समय हो गया था बाल भी सफ़ेद होने लगे थे । एक दिन उसने अपने दरबार मे उत्सव रखा ।
उत्सव मे मुजरा करने वाली और अपने गुरु को बुलाया । दूर देश के राजाओं को भी ।
राजा ने कुछ मुद्राए अपने गुरु को दी जो बात मुजरा करने वाली की अच्छी लगेगी वह मुद्रा गुरु देगा।

सारी रात मुजरा चलता रहा । सुबह होने वाली थीं, मुज़रा करने वाली ने देखा मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है उसको जगाने के लियें मुज़रा करने वाली ने एक दोहा पढ़ा ,

" बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिहाई ।
एक पलक के कारने, ना कलंक लग जाए। "

अब इस दोहे का अलग अलग व्यक्तियों ने अलग अलग अपने अपने अनुरूप अर्थ निकाला ।

* तबले वाला सतर्क हो  बजाने लगा ।
* जब ये बात गुरु ने सुनी,  गुरु ने सारी मोहरे उस मुज़रा करने वाली को दे दी

* वही दोहा उसने फिर पढ़ा तो राजा के लड़की ने अपना नवलखा हार दे दिया ।

* उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के लड़के ने अपना मुकट उतारकर दे दिया ।

* वही दोहा दोहराने लगी राजा ने कहा बस कर एक दोहे से तुमने वेश्या होकर सबको लूट लिया है ।

# जब ये बात राजा के गुरु ने सुनी गुरु के नेत्रो मे जल आ गया और कहने लगा, "  राजा इसको तू वेश्या न कह, ये मेरी गुरू है  । इसने मुझें मत दी है कि मै सारी उम्र जंगलो मे भक्ति करता रहा और आखरी समय मे मुज़रा देखने आ गया हूँ  ।
भाई मै तो चला।

# राजा की लड़की ने कहा, " आप मेरी शादी नहीं कर रहे थे,  आज मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था । इसनें मुझे सुमति दी है कि कभी तो तेरी शादी होगी । क्यों अपने पिता को कलंकित करती है ? "

# राजा के लड़के ने कहा, " आप मुझे राज नहीं दे रहे थे । मैंने आपके सिपाहियो से मिलकर आपका क़त्ल करवा देना था । इसने समझाया है कि आखिर राज तो तुम्हे ही मिलना है । क्यों अपने पिता के खून का इलज़ाम अपने सर लेते हो?

# जब ये बातें राजा ने सुनी तो राजा ने सोचा क्यों न मै अभी राजतिलक कर दूँ , गुरु भी मौजूद है ।
उसी समय राजतिलक कर दिया और लड़की से कहा बेटा, " मैं आपकी शादी जल्दी कर दूँगा। "

# मुज़रा करने वाली कहती है , " मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, मै तो ना सुधरी। आज से मै अपना धंधा बंद करती हूँ।
हे प्रभु ! आज से मै भी तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।

श्री राम जय जय राम जय जय राम ।
श्री राम जय जय राम जय जय राम ।
श्री राम जय जय राम जय जय राम ।

हमसफर का महत्व - जीवनसाथी

शादी शुदा लोग जरूर पढ़े आनन्द आएगा

कॉलेज में Happy married life पर

एक  workshop हो रही थी,

जिसमे कुछ शादीशुदा

जोडे हिस्सा ले रहे थे।

जिस समय प्रोफेसर  मंच पर आए 

उन्होने नोट किया कि सभी

पति- पत्नी शादी पर

जोक कर  हँस रहे थे...

ये देख कर प्रोफेसर ने कहा

कि चलो पहले  एक Game खेलते है...

उसके बाद  अपने विषय पर बातें करेंगे।

सभी  खुश हो गए

और कहा कोनसा Game ?

प्रोफ़ेसर ने एक married

लड़की को खड़ा किया

और कहा कि तुम ब्लेक बोर्ड पे

ऐसे 25- 30 लोगों के  नाम लिखो

जो तुम्हे सबसे अधिक प्यारे हों

लड़की ने पहले तो अपने परिवार के

लोगो के नाम लिखे

फिर अपने सगे सम्बन्धी,

दोस्तों,पडोसी और

सहकर्मियों के नाम लिख दिए...

अब प्रोफ़ेसर ने उसमे से

कोई भी कम पसंद वाले

5 नाम मिटाने को कहा...

लड़की ने अपने

सह कर्मियों के नाम मिटा दिए..

प्रोफ़ेसर ने और 5 नाम मिटाने को कहा...

लड़की ने थोडा सोच कर

अपने पड़ोसियो के नाम मिटा दिए...

अब प्रोफ़ेसर ने

और 10 नाम मिटाने को कहा...

लड़की ने अपने सगे सम्बन्धी

और दोस्तों के नाम मिटा दिए...

अब बोर्ड पर सिर्फ 4 नाम बचे थे

जो उसके मम्मी- पापा,

पति और बच्चे का नाम था..

अब प्रोफ़ेसर ने कहा इसमें से

और 2 नाम मिटा दो...

लड़की असमंजस में पड गयी

बहुत सोचने के बाद

बहुत दुखी होते हुए उसने

अपने मम्मी- पापा का

नाम मिटा दिया...

सभी लोग स्तब्ध और शांत थे

क्योकि वो जानते थे

कि ये गेम सिर्फ वो

लड़की ही नहीं खेल रही थी

उनके दिमाग में भी

यही सब चल रहा था।

अब सिर्फ 2 ही नाम बचे थे...

पति और बेटे का...

प्रोफ़ेसर ने कहा

और एक नाम मिटा दो...

लड़की अब सहमी सी रह गयी...

बहुत सोचने के बाद रोते हुए

अपने बेटे का नाम काट दिया...

प्रोफ़ेसर ने  उस लड़की से कहा

तुम अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओ...

और सभी की तरफ गौर से देखा...

और पूछा-

क्या कोई बता सकता है

कि ऐसा क्यों हुआ कि सिर्फ

पति का ही नाम

बोर्ड पर रह गया।

कोई जवाब नहीं दे पाया...

सभी मुँह लटका कर बैठे थे...

प्रोफ़ेसर ने फिर

उस लड़की को खड़ा किया

और कहा...

ऐसा क्यों !

जिसने तुम्हे जन्म दिया

और पाल पोस कर

इतना बड़ा किया

उनका नाम तुमने मिटा दिया...

और तो और तुमने अपनी

कोख से जिस बच्चे को जन्म दिया

उसका भी नाम तुमने मिटा दिया ?

लड़की ने जवाब दिया.......

कि अब मम्मी- पापा बूढ़े हो चुके हैं, 

कुछ साल के बाद वो मुझे

और इस दुनिया को छोड़ के

चले जायेंगे ......

मेरा बेटा जब बड़ा हो जायेगा

तो जरूरी नहीं कि वो

शादी के बाद मेरे साथ ही रहे।

लेकिन मेरे पति जब तक मेरी

जान में जान है

तब तक मेरा आधा शरीर बनके

मेरा साथ निभायेंगे

इस लिए मेरे लिए

सबसे अजीज मेरे पति हैं..

प्रोफ़ेसर और बाकी स्टूडेंट ने

तालियों की गूंज से

लड़की को सलामी दी...

प्रोफ़ेसर ने कहा

तुमने बिलकुल सही कहा

कि तुम और सभी के बिना

रह सकती हो

पर अपने आधे अंग अर्थात

अपने पति के बिना नहीं रह सकती l

मजाक मस्ती तक तो ठीक है

पर हर इंसान का

अपना जीवन साथी ही

उसको सब  से ज्यादा

अजीज होता है...

ये सचमुच सच है for all husband and wife   कभी मत भूलना.....

दोहे के सम्पूर्ण शिल्प (23)

लीजिये आपके सामने रखता हूँ दोहों के प्रकार। कुल 23 प्रकार के दोहे होते हैं।

1

भ्रमर दोहा

22 गुरु और 4 लघु वर्ण

भूले भी भूलूँ नहीं, अम्मा की वो बात।

दीवाली देती हमें, मस्ती की सौगात।।

22 2 22 12 22 2 2 21

222 22 12 22 2 221

2

सुभ्रमर दोहा

21 गुरु और 6 लघु वर्ण

रम्मा को सुधि आ गयी,अम्मा की वो बात।

दीवाली देती हमें, मस्ती की सौगात।।

22 2 11 2 12 22 2 2 21

222 22 12 22 2 221

3

शरभ दोहा

20 गुरु और 8 लघु वर्ण

रम्मा को सुधि आ गयी,अम्मा की वो बात।

जी में हो आनन्द तो,दीवाली दिन-रात।।

22 2 11 2 12 22 2 2 21

2 2 2 221 2 222 11 21

4

श्येन दोहा

19 गुरु और 10 लघु वर्ण

रम्मा को सुधि आ गयी,अम्मा की वो बात।

जी में रहे उमंग तो,दीवाली दिन-रात।।

22 2 11 2 12 22 2 2 21

2 2 12 121 2 222 11 21

5

मण्डूक दोहा

18 गुरु और 12 लघु वर्ण

जिन के तलुवों ने कभी,छुई न गीली घास।

वो क्या समझेंगे भला,माटी की सौंधास।।

11 2 112 2 12 12 1 22 21

2 2 1122 12 22 2 221 

6

मर्कट दोहा

17 गुरु और 14 लघु वर्ण

बुधिया को सुधि आ गयी,अम्मा की वो बात।

दिल में रहे उमंग तो,दीवाली दिन-रात।।

112 2 11 2 12 22 2 2 21

11 2 12 121 2 222 11 21

7

करभ दोहा

16 गुरु और 16 लघु वर्ण

झरनों से जब जा मिला,शीतल मन्द समीर।

कहीं लुटाईं मस्तियाँ, कहीं बढ़ाईं पीर।।

112 2 11 2 12 211 21 121

12 122 212 12 122 21 

8

नर दोहा

15 गुरु और 18 लघु वर्ण

द्वै पस्से भर चून अरु, बस चुल्लू भर आब।
फिर भी आटा गुंथ गया!!!!! पूछे कौन हिसाब?????

2 22 11 21 11 11 22 11 21

11 2 22 11 12 22 21 121   

9

हंस दोहा

14 गुरु और 20 लघु वर्ण

अपनी मरज़ी से भला,कब होवे बरसात?

नाहक उस से बोल दी,अपने दिल की बात।।

112 112 2 12 11 22 1121

211 11 2 21 2 112 11 2 21

10

गयंद दोहा

13 गुरु और 22 लघु वर्ण

चायनीज़ बनते नहीं,चायनीज़ जब खाएँ।

फिर इंगलिश के मोह में,क्यूँ फ़िरंग बन जाएँ।।

2121 112 12 2121 11 21

11 1111 2 21 2 2 121 11 21 

11

पयोधर दोहा

12 गुरु और 24 लघु वर्ण

हर दम ही चिपके रहो,लेपटोप के संग।

फिर ना कहना जब सजन,दिल पे चलें भुजंग।।

11 11 2 112 12 2121 2 21

11 2 112 11 111 11 2 12 121 

12

बल दोहा

11 गुरु और 26 लघु वर्ण

सजल दृगों से कह रहा,विकल हृदय का ताप।

मैं जल-जल कर त्रस्त हूँ,बरस रहे हैं आप।।

111 12 2 11 12 111 111 2 21

2 11 11 11 21 2 111 12 2 21  

13

पान दोहा

10 गुरु और 28 लघु वर्ण

अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार

शुचिकर सरस सुहावना दीपों का त्यौहार

11 211 1111 111 1111 11221

1111 111 1212 22 2 221

14

त्रिकल दोहा

9 गुरु और 30 लघु वर्ण

अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार

शुचिकर सरस सुहावना दीपावलि त्यौहार

11 211 1111 111 1111 11221

1111 111 1212 2211 221

15

कच्छप कोहा

8 गुरु और 32 लघु वर्ण

अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार

शुचिकर सरस सुहावना दीप अवलि त्यौहार

11 211 1111 111 1111 11221

1111 111 1212 21 111 221

16

मच्छ दोहा

7 गुरु और 34 लघु वर्ण

अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार

शुचिकर सुख वर्धक सरस,दीप अवलि त्यौहार

11 211 1111 111 1111 11221

1111 11211 111 21 111 221

17

शार्दूल दोहा

6 गुरु र 36 लघु वर्ण

अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अपरम्पार

शुचिकर सुखद सुफल सरस दीप अवलि त्यौहार

11 211 1111 111 1111 11221

1111 111 111 111 21 111 221

18

अहिवर दोहा

5 गुरु और 38 लघु वर्ण

अति उत्तम अनुपम अमित अविचल अगम अपार

शुचिकर सुखद सुफल सरस दीप अवलि त्यौहार

11 211 1111 111 1111 111 121

1111 111 111 111 21 111 221

19

व्याल दोहा

4 गुरु और 40 लघु वर्ण

अचल, अटल, अनुपम,अमित, अजगुत, अगम,अपार

शुचिकर सुखद सुफल सरस दीप अवलि त्यौहार

111 111 1111 111 1111 111 121

1111 111 111 111 21 111 221

20

विडाल दोहा

3 गुरु और 42 लघु वर्ण

अचल, अटल, अनुपम,अमित, अजगुत, अगम,अपार

शुचिकर सुखद सुफल सरस दियनि-अवलि त्यौहार

111 111 1111 111 1111 111 121

1111 111 111 111 111 111 221

21

उदर दोहा

1 गुरु और 46 लघु वर्ण

डग मग महिं डगमग करत, मन बिसरत निज करम

तन तरसत, झुरसत हृदय,यही बिरह कर मरम

11 11 11 1111 111 11 1111 11 111

11 1111 1111 111 12 111 11 111

पहले और तीसरे चरण के अंत में 212 प्रावधान का सम्मान रखा गया है तथा दूसरे और चौथे चरण के अंत में 21 पदभार वाले शब्दों के अपभ्रश स्वरूप को लिया गया है  

22

श्वान दोहा

2 गुरु और 44 लघु वर्ण

डग मग महिं डगमग करत, परत चुनर पर दाग

तबहि सुं प्रति पल छिन मनुज, सहत रहत विरहाग

11 11 11 1111 111 111 111 11 21

111 1 11 11 11 111 111 111 1121 

23

सर्प दोहा

सिर्फ़ 48 लघु वर्ण

डग मग महिं डगमग करत, मन बिसरत निज करम

तन तरसत, झुरसत हृदय,इतिक बिरह कर मरम

11 11 11 1111 111 11 1111 11 111

11 1111 1111 111 111 111 11 111

पहले और तीसरे चरण के अंत में 212 प्रावधान का सम्मान रखा गया है तथा दूसरे और चौथे चरण के अंत में 21 पदभार वाले शब्दों के अपभ्रश स्वरूप को लिया गया है

उदाहरण में लिखे गये दोहे मेरे नही है
धन्यवाद

उपदेश (महत्वपूर्ण)

यदि कोई मेरे भलाई के लिए उपदेश दिया तो उसे स्वीकार करने में क्या हानि है ????

अक्सर हम उपदेश देने वाले से हितकर उपदेश ग्रहण न कर उपदेशकर्ता के उपहास करने लगते हैं...
"पर उपदेश कुशल बहुतेरे"!!
मैं मानता हूँ कि उपदेशकर्ता में बहुत सी बुराइयाँ हो सकती हैं लेकिन हम उनकी बुराइयों पर ध्यान न देकर  हितकर उपदेश ग्रहण कर लेंगे तो क्या हानि है???
वास्तव में यदि मेरे हृदय में अहंकार प्रवेश किया है तो सुहृद के उपदेश अच्छा नहीं लगता...
संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहिं सोहान!!!!
नारद मुनि को कामदेव पर विजय का अभिमान हो गया था...जिता काम अहमिति मन माहीं!!!
लाग न उर उपदेस , जदपि कहे शिव बार बहु !!!
क्योंकि सती को अभिमान था...
"सती सरीर रहेहु बौरानी "!!
शिवजी के उपदेश न मानने पर सती जी एवं नारद मुनि की क्या दुर्गति हुई वह सर्वविदित है।
कैकेई को दशरथ जी के उपदेश...
प्रिया हास रिस परिहरहि मागु बिचारि बिबेकु.....
चहत न भरत भूपतहि न भोरे। बिधि बस कुमति बसि उर तोरें।।
कैकेई को सखियों, सुहृदों के उपदेश...
उठहु बेगि सो करहु उपाई। जेहि बिधि सोकु कलंकु नसाई।।
जेहि भाँति सोकु कलंकु जाइ उपाय करि कुल पालही।
हठि फेरु रामहिं जात बन जनि बात दूसरि चालही।।....
सखिन्ह सिखावनु (उपदेश) दीन्ह,
सुनत - मधुर !
परिणाम- हित!!!
लेकिन इस हितकर उपदेश पर कैकेई ध्यान नहीं देती है...
तेइँ कछु कान न कीन्ह, कुटिल प्रबोधी कूबरी।।
परिणाम देखिए...
अवनि जमहिं जाचति कैकेई। महि न मीचु बिधि बीचु न देई।।
कैकेई मर गई लेकिन कलंक जीवित है!!!!

मारीच द्वारा रावण को उपदेश-
तेहि पुनि कहा सुनहु दससीसा.....जाहु भवन कुल कुसल बिचारी!!!!
हितकर उपदेश देने वाला को गाली सुनना पड़ा...
सुनत जरा दीन्हिसि बहु गारी !!!
"गुरु जिमि मूढ़ करसि मम बोधा" ????
गीध जटायु के हितकर उपदेश ...
कह सुनु रावन मोर सिखावा ...तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू !!!!
"उपदेशो हि मूर्खानाम् प्रकोपाय ,  न शान्तये "!!!!
सुहृद पत्नी तारा द्वारा बाली को उपदेश...
सुनु पति जिन्हहि मिलेउ सुग्रीवा। ते द्वौ बंधु अतुल बल सींवा।।
कोसलेस सुत लछिमन रामा। कालहु जीति सकहिं संग्रामा।।
सच्चे और हितकर उपदेश देने वाली को बाली डरपोक घोषित कर दिया...कह बाली सुनु भीरु प्रिय!!!!

हनुमानजी द्वारा रावण को उपदेश...
बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन।।
देखहु तुम निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी।।
...मोरे कहें जानकी दीजै...
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपासिंधु भगवान।।
ये उपदेश देने वाले के हितकर उपदेश पर नहीं बल्कि उसके वेष देखकर हँसी उड़ा दिया...
"मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी!!!!"
रे मूर्ख! तूने पुलतस्य वंश में जन्म लेकर  या पंचवटी.में साधु वेष धारण कर कौन सा बढ़िया कार्य किया???
कपि शरीर में उपदेश नहीं दे सकते पर तुम साधु वेष में पराई स्त्री को हरण कर कौन सा बड़े विद्वान वाला कार्य किया??
मंदोदरी द्वारा रावण को उपदेश...
कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहू।।...
तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।।...
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें।हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।।
रावण मंदोदरी के हितकर उपदेश की हँसी उड़ा दिया...
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। "बिहसा" जगत बिदित अभिमानी।।
छोटे भाई विभीषण के उपदेश....
...काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।...
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही...
परिणाम....अपमानित, निष्कासित किया
वृद्ध माल्यवंत द्वारा उपदेश देने पर.
..बूढ़ भए न त मरतेउ तोही...करिआ मुँह करि जाहु अभागे।
पुत्र प्रहस्त द्वारा हितकर उपदेश देने पर...
बेनु मूल सुत भयउ घमोई !!!
उसे अपने संतान होने पर संदेह किया!!!!
गुप्तचर सुक सारक द्वारा हितकर उपदेश देने पर...
सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा । नाथ राम सन तजहु बिरोधा।।....
जनकसुता रघुनाथहि दीजे। एतना कहा मोर प्रभु कीजे।।
इस हितकर उपदेश पर रावण ने अपने गुप्तचरों को...
"चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही"!!!
परिणाम सर्वविदित है।

मित्रों! हितकर उपदेश किसी से भी मिले उसे सादर ग्रहण करना चाहिए जिसके प्रमाण शिवजी के हँस शरीर धारण कर काकभुसुंडी जी के पास श्रीराम कथा श्रवण करना, पक्षियों के राजा गरुड़....गरुड़ महा ग्यानी गुन रासी। श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी...द्वारा काकभुसुंडी जी के पास आकर श्रीराम कथा श्रवण करना है।
काकभुसुंडी जी पक्षीराज  गरुड़ जी से कहते हैं कि- हे सर्पों के वैरी गरुड़ जी ! यह वेद शास्त्र सम्मत नियम है कि यदि हमें नीच से प्रेम करने से परम कल्याण है तो हमें निःसंकोच अत्यंत नीच से भी प्रेम करना चाहिए....
पन्नगारि असि नीति , श्रुति संमत सज्जन कहहिं।
अति नीचहु सन प्रीति, करिअ जानि निज परम हित।।
उदाहरण स्वरूप देखिए कि कीड़े अत्यंत अपवित्र होते हैं लेकिन कीड़े पालन करने से ही रेशमी वस्त्र मिलेगा ,यह जानकर उस अपवित्र कीड़े को पालन करते हैं....
पाट कीट तें होइ,  तेहि ते पाटंबर रुचिर।
कृमि पालइ सबु कोइ , परम अपावन प्रान सम ।।
अतः हमें मक्खी नहीं बल्कि मधुमक्खी के समान व्यवहार करना चाहिए।
(मधुकर सरिस संत गुनग्राही )

सीताराम जय सीताराम..