यदि कोई मेरे भलाई के लिए उपदेश दिया तो उसे स्वीकार करने में क्या हानि है ????
अक्सर हम उपदेश देने वाले से हितकर उपदेश ग्रहण न कर उपदेशकर्ता के उपहास करने लगते हैं...
"पर उपदेश कुशल बहुतेरे"!!
मैं मानता हूँ कि उपदेशकर्ता में बहुत सी बुराइयाँ हो सकती हैं लेकिन हम उनकी बुराइयों पर ध्यान न देकर हितकर उपदेश ग्रहण कर लेंगे तो क्या हानि है???
वास्तव में यदि मेरे हृदय में अहंकार प्रवेश किया है तो सुहृद के उपदेश अच्छा नहीं लगता...
संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहिं सोहान!!!!
नारद मुनि को कामदेव पर विजय का अभिमान हो गया था...जिता काम अहमिति मन माहीं!!!
लाग न उर उपदेस , जदपि कहे शिव बार बहु !!!
क्योंकि सती को अभिमान था...
"सती सरीर रहेहु बौरानी "!!
शिवजी के उपदेश न मानने पर सती जी एवं नारद मुनि की क्या दुर्गति हुई वह सर्वविदित है।
कैकेई को दशरथ जी के उपदेश...
प्रिया हास रिस परिहरहि मागु बिचारि बिबेकु.....
चहत न भरत भूपतहि न भोरे। बिधि बस कुमति बसि उर तोरें।।
कैकेई को सखियों, सुहृदों के उपदेश...
उठहु बेगि सो करहु उपाई। जेहि बिधि सोकु कलंकु नसाई।।
जेहि भाँति सोकु कलंकु जाइ उपाय करि कुल पालही।
हठि फेरु रामहिं जात बन जनि बात दूसरि चालही।।....
सखिन्ह सिखावनु (उपदेश) दीन्ह,
सुनत - मधुर !
परिणाम- हित!!!
लेकिन इस हितकर उपदेश पर कैकेई ध्यान नहीं देती है...
तेइँ कछु कान न कीन्ह, कुटिल प्रबोधी कूबरी।।
परिणाम देखिए...
अवनि जमहिं जाचति कैकेई। महि न मीचु बिधि बीचु न देई।।
कैकेई मर गई लेकिन कलंक जीवित है!!!!
मारीच द्वारा रावण को उपदेश-
तेहि पुनि कहा सुनहु दससीसा.....जाहु भवन कुल कुसल बिचारी!!!!
हितकर उपदेश देने वाला को गाली सुनना पड़ा...
सुनत जरा दीन्हिसि बहु गारी !!!
"गुरु जिमि मूढ़ करसि मम बोधा" ????
गीध जटायु के हितकर उपदेश ...
कह सुनु रावन मोर सिखावा ...तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू !!!!
"उपदेशो हि मूर्खानाम् प्रकोपाय , न शान्तये "!!!!
सुहृद पत्नी तारा द्वारा बाली को उपदेश...
सुनु पति जिन्हहि मिलेउ सुग्रीवा। ते द्वौ बंधु अतुल बल सींवा।।
कोसलेस सुत लछिमन रामा। कालहु जीति सकहिं संग्रामा।।
सच्चे और हितकर उपदेश देने वाली को बाली डरपोक घोषित कर दिया...कह बाली सुनु भीरु प्रिय!!!!
हनुमानजी द्वारा रावण को उपदेश...
बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन।।
देखहु तुम निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी।।
...मोरे कहें जानकी दीजै...
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपासिंधु भगवान।।
ये उपदेश देने वाले के हितकर उपदेश पर नहीं बल्कि उसके वेष देखकर हँसी उड़ा दिया...
"मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी!!!!"
रे मूर्ख! तूने पुलतस्य वंश में जन्म लेकर या पंचवटी.में साधु वेष धारण कर कौन सा बढ़िया कार्य किया???
कपि शरीर में उपदेश नहीं दे सकते पर तुम साधु वेष में पराई स्त्री को हरण कर कौन सा बड़े विद्वान वाला कार्य किया??
मंदोदरी द्वारा रावण को उपदेश...
कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहू।।...
तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।।...
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें।हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।।
रावण मंदोदरी के हितकर उपदेश की हँसी उड़ा दिया...
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। "बिहसा" जगत बिदित अभिमानी।।
छोटे भाई विभीषण के उपदेश....
...काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।...
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही...
परिणाम....अपमानित, निष्कासित किया
वृद्ध माल्यवंत द्वारा उपदेश देने पर.
..बूढ़ भए न त मरतेउ तोही...करिआ मुँह करि जाहु अभागे।
पुत्र प्रहस्त द्वारा हितकर उपदेश देने पर...
बेनु मूल सुत भयउ घमोई !!!
उसे अपने संतान होने पर संदेह किया!!!!
गुप्तचर सुक सारक द्वारा हितकर उपदेश देने पर...
सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा । नाथ राम सन तजहु बिरोधा।।....
जनकसुता रघुनाथहि दीजे। एतना कहा मोर प्रभु कीजे।।
इस हितकर उपदेश पर रावण ने अपने गुप्तचरों को...
"चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही"!!!
परिणाम सर्वविदित है।
मित्रों! हितकर उपदेश किसी से भी मिले उसे सादर ग्रहण करना चाहिए जिसके प्रमाण शिवजी के हँस शरीर धारण कर काकभुसुंडी जी के पास श्रीराम कथा श्रवण करना, पक्षियों के राजा गरुड़....गरुड़ महा ग्यानी गुन रासी। श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी...द्वारा काकभुसुंडी जी के पास आकर श्रीराम कथा श्रवण करना है।
काकभुसुंडी जी पक्षीराज गरुड़ जी से कहते हैं कि- हे सर्पों के वैरी गरुड़ जी ! यह वेद शास्त्र सम्मत नियम है कि यदि हमें नीच से प्रेम करने से परम कल्याण है तो हमें निःसंकोच अत्यंत नीच से भी प्रेम करना चाहिए....
पन्नगारि असि नीति , श्रुति संमत सज्जन कहहिं।
अति नीचहु सन प्रीति, करिअ जानि निज परम हित।।
उदाहरण स्वरूप देखिए कि कीड़े अत्यंत अपवित्र होते हैं लेकिन कीड़े पालन करने से ही रेशमी वस्त्र मिलेगा ,यह जानकर उस अपवित्र कीड़े को पालन करते हैं....
पाट कीट तें होइ, तेहि ते पाटंबर रुचिर।
कृमि पालइ सबु कोइ , परम अपावन प्रान सम ।।
अतः हमें मक्खी नहीं बल्कि मधुमक्खी के समान व्यवहार करना चाहिए।
(मधुकर सरिस संत गुनग्राही )
सीताराम जय सीताराम..
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