मंगलवार, 28 जून 2016

संकलित कहानी

★एक शार्ट मेसेज स्टोरी...                     किताब का आखिरी पन्ना...
एक व्यक्ति को रास्ते में यमराज मिल गये वो व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं सका। यमराज ने पीने के लिए पानी मांगा उस व्यक्ति ने उन्हें पानी पिलाया। पानी पीने के बाद यमराज ने बताया कि वो उसके प्राण लेने आये हैं लेकिन चूँकि तुमने मेरी प्यास बुझाई है इसलिए मैं तुम्हें अपनी किस्मत बदलने का एक मौका देता हूँ। यह कहकर यमराज ने उसे एक डायरी देकर कहा तुम्हारे पास 5 मिनट का समय है इसमें तुम जो भी लिखोगे वही होगा लेकिन ध्यान रहे केवल 5 मिनट। उस व्यक्ति ने डायरी खोलकर देखा तो पहले पेज पर लिखा था कि उसके पड़ोसी की लाॅटरी निकलने वाली है और वह करोड़पति बनने वाला है। उसने वहाँ लिख दिया कि पड़ोसी की लाॅटरी न निकले। अगले पेज पर लिखा था उसका एक दोस्त चुनाव जीतकर मंत्री बनने वाला है उसने लिख दिया कि वह चुनाव हार जाये। इसी तरह वह पेज पलटता रहा और अंत में उसे अपना पेज दिखाई दिया। जैसे ही उसने कुछ लिखने के लिए अपना पैन उठाया यमराज ने उसके हाथों से डायरी ले ली और कहा वत्स तुम्हारा 5 मिनट का समय पूरा हुआ अब कुछ नहीं हो सकता। तुमने अपना पूरा समय दूसरों का बुरा करने में निकाल दिया और अपना जीवन खतरे में डाल दिया क्योंकि तुमने इस किताब का आखिरी पन्ना पढ़ा ही नही उसमे तुमको जीवनदान लिखा था की तेरे भलाई के लिये सब कुछ लिखा था पर अब अतः तुम्हारा अन्त निश्चित है। यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत पछताया लेकिन सुनहरा समय निकल चुका था।

यदि ईश्वर ने आपको कोई शक्ति प्रदान की है तो कभी किसी का बुरा न सोचो न करो।
दूसरों का भला करने वाला सदा सुखी रहता है और ईश्वर की कृपा सदा उस पर बनी रहती है।
प्रण लें आज से हम किसी का बुरा नहीं करेंगे।                                                  ।।हरि बोल।।                                             "शुभ प्रभातम्" मेरे कृष्णपिय मित्रों                     "जयश्रीकृष्णा"

पद्द विधा

*पद्य विधा के विषय में:-*

जिसके अंतर्गत एक टेक या चरण लिया जाता है और फिर उसी के भाव एवं विन्यास के आधार पर पूरे पद का निर्माण होता है !
सबसे सरल विधा मानी गयी है 16 , 16 मात्राओं की विधा जो चौपाई या अरिल्ल विधा में होता है !
पहला टेक या चरण 16 मात्रा का 
इसके बाद 16, 16 पर यति ! पहले 16 मात्रा पर तुकांत नहीं होता , पर इसके पश्चात वाले चरण पर तुकांत होना आवश्यक है !
चूँकि पद्य एक संगीतबद्ध रचना होती है इसलिए लय प्रवाह का विशेष रूप से ध्यान रखें !
लय प्रवाह समझने हेतु एक उदाहरण देखें :
जैसे :
जब देइ अस विवेक विधाता : 16 
जब अस विवेक देइ विधाता : 16
किन्तु अब इसे ऐसे पढ़े :
जब अस देइ विवेक विधाता : 16 
जब विवेक अस देइ विधाता : 16 
अस विवेक जब देइ विधाता : 16
16 मात्रा सभी में है परन्तु लय नीचे वाली ३ पंक्तियों में ही आ रहा है !
अब पद्य का एक उदाहरण देखें जो 16 , 16 मात्राभार के अनुरूप है : 
*********************************************************
निशिदिन बरसत नैन हमारे !
जब ते पिय बिसराय गयो सखि ,दिन रो,निशि बीतत गिन तारे !
निशिदिन बरसत नैन हमारे ! ------------------------- 16 मात्रा ( टेक ) 
जब ते पिय बिसराय गयो सखि , --- ( 16 मात्रा , तुकांत निषेध ) 
दिन रो,निशि बीतत गिन तारे ! ---------- ( 16 मात्रा , तुकांत अनिवार्य )
**********************************************************

यशोधरा के उद्गार महाभिनिष्क्रमण के बाद💔
16,16 पर यति

साँवरिया सोता छोड़ गए !!

बन्धन  थे  जन्मों जन्मों के ,
क्यूँ मुझे  अकेला छोड़ गए !!

बीच राह में हाथ छुड़ा कर,
ये प्यार भरा दिल तोड़ गए !!

मधुमास अभी बीते कब थे,
सब खुशियों के घट फोड़ गए !!

बिरहा  की वेदना और अश्रु,
मुझसे ही लगाकर होड़ गए !!

क्या कमी समर्पण में थी जो,
अंतर में व्यथा निचोड़ गए !!

दुःख,जरा, मरण,व्याधि में उलझ,
मुझको पीड़ा से जोड़ गए !!

साँवरिया सोता छोड़ गए !!!
@ब्रजेश शर्मा
16.25hrs
27.06.16

हाइकू छन्द

हाइकु

हाइकु  एक बहुत छोटी जापानी विधा में लिखी जाने वाली कविता है. इसके तीन गुण है

* जिसे हाइकु की जान या मुख्य गुण कहा गया है वह "किरे" , कटाई है (अँग्रेज़िमे cut, जापानिमे kiru या kire) जो दो बिंबो को संमिधि में रखने का काम करता है.

जापानी में एक kireji , यह जापानी हाइकु में एक शब्द या मौखिक चिह्न के रूपमे होता है और जो दोनो बिंबो के बीच रहता है वह बिंब बदलने का संकेत देता है.

* पारंपरिक हाइकु  17 वर्ण (जापानी  में on या morea कहते है) का होता है जिसे तीन वाक्यांश में तीन पंक्तियों मे 5 , 7 और 5 वर्ण में लिखा जाता है.

*  ऋतु शब्द (जापानी में  किगो) का होना हाइकु में आवश्यक है यह शब्द एक संग्रह से ही लिया जाता है (जापानी में जिसे साइज की कहते है) हाइकु में प्रकृति मुख्य विषय होता है.

एक हाइकू के दो हिस्से होते हैं पहले हिस्से में एक बिम्ब और दुसरे हिस्से में दूसरा बिम्ब यह तीन पन्क्तियों में व्यक्त किया जाता है

दोनों हिस्सोंके बीच होता है चीरा जो चिह्न के रूपमे होता है (किरेजी, kireji ) . पाठक भाव बदलने पर तुरंत समझ जाता है कि दूसरा बिम्ब शुरू हो रहा है

तीन पन्क्तियों में से दो पंक्तियाँ जुडी हो और एक स्वतंत्र हो. कुल मिला के ऐसे दो हिस्से 5 + 12  या 12 + 5 शब्दांश में , कुल १७ वर्णों में हो.
एक हाइकु के लिए "कइगो (Kigo)" अर्थात "ऋतू शब्द" बहुत अहम होता है 

आधुनिक जापानी हाइकु ( गेंदेइ हाइकू )

गेंदेइ मे 17 वर्ण का उपयोग नहीं होता है पर छोटी / बड़ी / छोटी ऐसे तीन  पंक्तियाँ होती है,  पर दो बिंबोका दृश्यका संमिधि मे रखना (अँग्रेज़िमे juxtaposition) बहुत ही अनिवार्य है -- दोनो पारंपरिक और आधुनिक हाइकु मे यह समानता है l

*जापानी मे हाइकु ,केवल एक ही पंक्ति में छापा जाता है. हिंदी में तीन पंक्तियों में लिखे जाते है l

हिंदी हाइकु  प्रणाली

*पहले के हाइकु के ज्ञाताओं के अनुसार तीन पंक्ति, तीन भाव लेकिन  पारम्परिक ज्ञाताओं और नए लिखने वालों के अनुसार   तीनों पंक्तियों में से कोई भी दो पंक्ति जुड़ी हुई होनी चाहिए जैसे पं 1 और पं 2 या फिर पं 2 और पं 3 जुड़ी हुई  रहनी चाहिए. जो पंक्ति जुड़ी नहीं है वहाँ kireji या चीरा का चिह्न (- या ; जिसे) से अलग किया जाता है ताकि हाइकु के दो हिस्से अलग से दिखे. हाइकु जो पहले हॉककू के नाम से जाना जाता था, उसे यह नाम मासाओके शिकिने 19वी सदी के अंत दिया

कीगो (Kigo )

की----एक ऋतु अर्थात गर्मी सर्दी बरसात में से किसी ऋतु में से बोध हो

गो-- शब्द

कीगो--ऋतु शब्द

आम गर्मी
छाता बरसात
रजाई सर्दी

कीगो  एक ऋतु निर्देश होता  है

हाइकु के और दिशा निर्देश

1. पारम्परिक हाइकु सिर्फ प्रकृतिके विषय पे ही होता है

2. हाइकु में बयान या कथन नहीं होते हैं

3. L1, L2 L3 लाइन 1 लाइन 2 और लाइन 3   अर्थात पं 1 , पं  2 , पं 3-पंक्ति क्रमाक 1 , 2 और 3

4. हाइकु में उपमा है अगर आप सन्निधि में चीरे (juxtaposition with kireji)
के साथ दो बिम्ब अलग अलग एक ही हाइकु में इन्हे शिल्प करे तो।
यही अच्छे शिल्पकार हाइकू कवि की खूबी है

5. 5 + 12 या 12 + 5 में ढलनेसे पहले दो दॄष्योंकी
रूप रेखा करले। 5 में एक दृश्य और 12 में दूसरा दृश्य
ऐसे कुल मिलके दो दृश्य अलग अलग लिखे। फिर उन्हें सन्निधिमे (-)चिह्न द्वारा अलग कर साथमे लिखे
5 वाला दृश्य वाक्यांश में हो पर 12 वाला वाक्य में भी हो सकता है।

12 वर्ण का अर्थ यह होता है कि यह दो पंक्तियाँ स्वतंत्र नहीं है , जुडी हुई है ।
12 वर्णोका हिस्सा जब लिखें तब ये ध्यान दें कि वह दो वाक्यांश न हो। एक ही वाक्यांश या तो वा भी हो सकता है।
5 + 12 का अर्थ है एक स्वतंत्र पंक्ति और दूसरी तीनमे से दो पंक्तियाँ जुडी हुई है।
कुल मिलके दो हिस्से

६. हाइकु में मानवीकरण और कल्पना नहीं होती है, वास्तविकता होती है। पर वास्तविकता को 5 इन्द्रियों द्वारा एक क्षण की अनुभिति ही 3 पंक्तियों की यह रचना कराता है।
धरती चाँद नभ सूर्य धारा आदि अगर मानव की तरह कुछ करते दिखेंगे या कोई भी निर्जीव वस्तु या मूक जानवर कोई मानवी की तरह कार्य करे और उस जैसी कल्पना को रचना में दिखलाना मानवीकरण होता है।

7. हाइकु / सेनर्यु में विशेषण और क्रियाविशेषण से क्यों दूर रहना है या उपयोग टालना है ?

पहले 3 पंक्तियाँ और 17 वर्ण सबसे बड़ी चुनौती है तो बिम्ब और भाव को अक्षत रख कर
विशेषण और क्रियाविशेषणको हटाये जा सकते हैं जो गैर जरूरी या अनावश्यक। हो।
दूसरा और महत्त्वपूर्ण बिंदु, इनके उपयोग से देखा गया है कि रचना कहने लगती है दिखती नहीं है
अगर विशेषण और क्रियाविशेषण रचना के लिए बहुत ही जरूरी है, तब ही इसका उपयोग करना है। अगर रचना के बिम्ब या भाव इनके बगैर बहुत बदल जाते है या इनका उपयोग अनिवार्य है तब ही इनका उपयोग उचित होता है

मात्राभार विस्तृत जानकारी

कुछ जानकारी।

मात्राभार

छन्द बद्ध रचना के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है , इसके निम्न
लिखित नियम हैं :-
(१) ह्रस्व स्वरों की मात्रा १ होती है
जिसे लघु कहते हैं , जैसे - अ, इ, उ, ऋ
(२) दीर्घ स्वरों की मात्रा २
होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे-आ, ई, ऊ,
ए,ऐ,ओ,औ
(३) व्यंजनों की मात्रा १ होती है , जैसे -
.... क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ,ञ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न /प,फ,ब,भ,म /. य,र,ल,व,श,ष,स,ह
(४) व्यंजन में ह्रस्व इ , उ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार १ ही रहती है
(५) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार
.... २ हो जाता है
(६) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से
मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
.... जैसे - रँग=११ , चाँद=२१ , माँ=२ , आँगन=२११, गाँव=२१
(७) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार २ हो
जाता है , जैसे -
.... रंग=२१ , अंक=२१ , कंचन=२११ ,घंटा=२२ , पतंगा=१२२
(८) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर
नहीं पडता है,
.... जैसे - नहीं=१२ , भींच=२१ ,
छींक=२१ ,
.... कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार
यही मानते हैं,
(९) संयुक्ताक्षर का मात्राभार १ (लघु) होता है , जैसे -
स्वर=११ , प्रभा=१२
.... श्रम=११ , च्यवन=१११
इसे ऐसे पढ़ा जाता है - स्व+र=११ , प्र+भा=१२, श्र+म=११ , च्य+वन=12

(१०) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार १
(लघु) ही रहता है ,
..... जैसे - प्रिया=१२ , क्रिया=१२ , द्रुम=११ ,च्युत=११,
श्रुति=११

(११) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका
मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,
..... जैसे - भ्राता=२२ , श्याम=२१ ,
स्नेह=२१ ,स्त्री=२ , स्थान=२१ ,

(१२) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,
जैसे - नम्र=२१ , सत्य=२१ , विख्यात=२२१, कुल्हड़=211 आदि।  क्योंकि इन्हें क्रमशः नम्+र, सत्+य, विख्+यात और कुल्+हड़ पढ़ा जाता है। इनमें आधे अक्षर का भर पूर्व वर्ण पर पड़ता है।

(१३) संयुक्ताक्षर लघु वर्ण हो और उससे पूर्व  गुरु वर्ण हो तो पूर्व वर्ण ले मात्राभार में कोई
अन्तर नहीं पडता है, अर्थात आधे अक्षर का मात्रा भार नहीँ गिना जाता है।
जैसे - हास्य=२१, शाश्वत=२११ , भास्कर=२११.

(14) अगर सयुंक्ताक्षर दीर्घ वर्ण हो और उसके 
पूर्व भी दीर्घ वर्ण हो तो आधे वर्ण का मात्रा भार 1 गिना जाता है। जैसे-
रास्ता -2+1+2=5
आस्माँ-2+1+2=5
इसमें आधे अक्षर की 1 मात्रा मानी गई है। क्योंकि रास्ता  को रास्+ता  और आस्माँ को आस्+माँ  पढ़ा जाता है।

अपवाद-
आत्मा को आ+त्मा पढ़ा जाता है इसलिए इसका मात्रा भार 2+2=4 होती है।

(15) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (१२) के कुछ अपवाद भी हैं , जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है , अशुद्ध उच्चारण नहीं। देखना यह होता है कि उच्चारण मैं आधे अक्षर का भार किसके साथ जुड़ रहा है पूर्व वर्ण के साथ या बाद के वर्ण के साथ।

जैसे- तुम्हें=१२ , तुम्हारा/तुम्हारी/
तुम्हारे=१२२, जिन्हें=१२, जिन्होंने=१२२, कुम्हार=१२१, कन्हैया=१२२ , मल्हार=121, कुल्हाड़ी=122
इन सभी में आधे अक्षर का भार पूर्व वर्ण की बजाय संयुक्ताक्षर के साथ ही रहता है। इसलिए यहाँ पूर्व लघु वर्ण के मात्रा भार में कोई वृद्धि नहीं होती है। जैसे तु+म्हें=१२,  तु+म्हा+रा/तु+म्हा+री/तु+म्हा+रे=१२२,  जि+न्हें=१२, जि+न्हों+ने=१२२, कु+म्हा+र=१२१, क+न्है+या=१२२, कु+ल्हा+ड़ी=122

जबकि दूसरी ओर कुल्हड़=211 को कुल्+हड़ पढ़ा जाता है और अर्ध वर्ण ल् का भार पूर्व वर्ण कु पर पड़ रहा है।
                    *****
किसी शब्द का मात्राभार उसके उच्चारण में लगने वाला समय होता है।
*****
संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना:
(आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी से वार्तालाप के आधार पर )
•जब दो अक्षर मिलकर संयुक्त अक्षर बनाते हैं तो जिस अक्षर की आधी ध्वनि होती है उसकी गणना पूर्व अक्षर के साथ होती है. यथा:
अर्ध = (अ + आधा र) + ध = २ + १ = ३
मार्ग = (मा + आधा र) + ग = २ + १ = ३
दर्शन = (द + आधा र) + श + न = २ + १ + १ = ४
•आधे अक्षर के पहले दीर्घ या बड़ा अक्षर हो तो आधा अक्षर उसके साथ मिलकर उच्चरित होता है इसलिए मात्रा २ ही रहती हैं. ढाई या तीन मात्रा नहीं हो सकती.
क्ष = आधा क + श
कक्षा = (क + आधा क) + शा = २ + २ = ४
क्षत = (आधा क + श ) + त = १ + १ = २
विक्षत = ( वि + आधा क ) + श + त = २ +१+१ = ४
ज्ञ = आधा ज + ञ = 1
विज्ञ = (वि + आधा ज) + ञ = २ + १ = ३
ज्ञान की मात्रा ३ होगी, पर विज्ञान की मात्रा ५ होगी
त्र में त तथा र का उच्चारण एक साथ होता है अतः त्र की मात्रा २ होगी
पत्र = १ + २ = ३
पात्र = २ + २ = ४
•संयुक्त अक्षर यदि प्रथम हो तो अर्ध अक्षर की गणना नहीं होती
प्रचुर १+१+१ = ३
त्रस्त = २ + १ = ३
क्षत = (आधा क + श ) + त = १ + १ = २
•जिन्हें तथा उन्हीं की मात्रा गणना किस प्रकार होगी ?
जिन्हें तथा उन्हीं को जोर से बोलिए आप पहले जि फिर न्हें तथा उ फिर न्हीं बोलेंगी. इसी अधार पर गिनिए. मात्रा गणना के नियम ध्वन-विज्ञान अर्थात उच्चारण के अधार पर ही बने हैं.
उन्हीं = उ + (आधा न + हीं) = १ + २ = ३
जिन्हें = जि + (आधा न + हें) = १ + २ = ३
खड़ी हिन्दी में इन्हें क्मशः ४-४ गिनेंगे. लेकिन उपरोक्त विधि से गिने तो उचित होगा.
•मात्रा गणना बिलकुल आसान है . शब्द को जोर से बोलिए... उच्चारण में लगने वाले समय का ध्यान रखें. कम समय लघु मात्रा १, अधिक समय दीर्घ मात्रा २ . कुल इतना है... शेष अभ्यास...
बोलकर अंतर समझें कन्या, हंस आदि में ‘न’ का उच्चारण क्रमशः ‘क’ व ‘ह’ के साथ है. कन्हैया में ‘न’ का उच्चारण ‘है’ के साथ है क + न्है + या
कन्या = (क + आधा न) + या = २ + २ = ४
हंस = (ह + आधा न) + स = २ + १ = ३
कन्हैया = क + न्है + या = १ + २ + २ = ५
*****

यति और गति

यति – छन्द को पढ़ते समय बीच–बीच में कहीं कुछ रूकना पड़ता हैं, इसी रूकने के स्थान कों गद्य में 'विराग' और पद्य में 'यति' कहते हैं।
गति – छन्दोबद्ध रचना को लय में आरोह अवरोह के साथ पढ़ा जाता है। छन्द की इसी लय को 'गति' कहते हैं।
तुक – पद्य–रचना में चरणान्त के साम्य को 'तुक' कहते हैं। अर्थात् पद के अन्त में एक से स्वर वाले एक या अनेक अक्षर आ जाते हैं, उन्हीं को 'तुक' कहते हैं।
तुकों में पद श्रुति, प्रिय और रोंचक होता है तथा इससे काव्य में लथपत सौन्दर्य आ जाता है।

गण
तीन–तीन अक्षरो के समूह को 'गण' कहते हैं। गण आठ हैं, इनके नाम, स्वरूप और उदाहरण नीचे दिये जाते हैं : –
  नाम  स्वरूप    उदाहरण   सांकेतिक
१ यगण  ।ऽऽ वियोगी य
२ मगण ऽऽऽ मायावी मा
३ तगण ऽऽ। वाचाल ता
४ रगण ऽ।ऽ  बालिका रा
५ जगण ।ऽ। सयोग ज
६ भगण ऽ।। शावक भा
७ नगण ।।। कमल न
८ सगण ।।ऽ सरयू स

निम्नांकित सूत्र गणों का स्मरण कराने में सहायक है –
"यमाता राजभान सलगा"
इसके प्रत्येक वर्ण भिन्न–भिन्न गणों परिचायक है, जिस गण का स्वरूप ज्ञात करना हो उसी का प्रथम वर्ण इसी में खोजकर उसके साथ आगे के दो वर्ण और मिलाइये, फिर तीनों वर्णों के ऊपर लघु–गुरू मात्राओं के चिन्ह लगाकर उसका स्वरूप ज्ञात कर लें। जैसे –
'रगण' का स्वरूप जानने के लिए 'रा' को लिया फिर उसके आगे वाले 'ज' और 'भा' वर्णों को मिलाया। इस प्रकार 'राज भा' का स्वरूप 'ऽ।ऽ' हुआ। यही 'रगण' का स्वरूप है।

छन्दों के भेद
छन्द तीन प्रकार के होते हैं –
(१) वर्ण वृत्त – जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के नियमानुसार होती हैं, उन्हें 'वर्ण वृत्त' कहते हैं।
(२) मात्रिक – जिन छन्दों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है, उन्हें 'मात्रिक' छन्द कहते हैं।
(३) अतुकांत और छंदमुक्त – जिन छन्दों की रचना में वर्णों अथवा मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता, उन्हें 'छंदमुक्त काव्य कहते हैं। ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी।

प्रमुख मात्रिक छंद-

(१) चौपाई
चौपाई 32 मात्राओं का छंद है। इसके प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण (121) और तगण (221) नहीं होता।

उदाहरण 
देखत भृगुपति बेषु कराला।
ऽ-।-।  ।-।-।-।  ऽ-।- ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
उठे सकल भय बिकल भुआला।
।-ऽ ।-।-।  ।-।  ।-।-।  ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
पितु समेत कहि कहि निज नामा।
।-।  ।-ऽ-।  ।-।  ।-।  ।-।   ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
लगे करन सब दण्ड प्रनामा।
।-ऽ ।-।-।  ।-।  ऽ-।  ऽ-ऽ-ऽ  (१६ मात्राएँ)

(२) रोला
रोला छन्द में २४ मात्राएँ होती हैं। पहले चरण में 11 और दूसरे चरण में 13 मात्राएं होतीं हैं। 11वीं और 13वीं मात्राओं पर विराम होता है। 11वीं मात्रा सामान्यता लघु होती है पर यह जरूरी नहीं है। अन्त मे कम से कम एक गुरु का होना जरूरी है। पर सामान्यत दो गुरू होने से लय ज्यादा मनोरम हो जाती है।
उदाहरण –
'उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
ऽ-।-।  ऽ ।-।  ऽ-।  ऽ-।-ऽ  ऽ-ऽ  ऽ-ऽ (२४ मात्राएँ)

(३) दोहा
इस छन्द के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे–चौथे चरण में ११ मात्राएँ होती हैं। विषम (पहले और तीसरे) चरणों के आरम्भ जगण (121) नहीं होना चाहिये और इनका अंत गुरु लघु गुरु (212) से होता है। सम (दूसरे और चौथे) चरणों के अन्त में गुरु लघु (21) होना जरूरी है तथा ये तुकांत होनी चाहिए। दो छंद अर्थात दो पंक्तियाँ मिलकर एक दोहा पूरा होता है।
उदाहरण –
मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परे, श्याम हरित दुति होय।।(२४ मात्राएँ)

(४) सोरठा
सोरठा छन्द के पहले और तीसरे चरण में ११–११ और दूसरे चौथे चरण में १३–१३ मात्राएँ होती हैं। इसके पहले और तीसरे चरण के तुक मिलते हैं। अगर दोहा का उल्टा कर दिया जाय तो सोरठा बन जाता है। अर्थात अगर दोहे के पहले और दूसरे चरण को तथा तीसरे और चौथे चरण को आपस में बदल दिया जाय तो वह सोरठा बन जाता है। दो छंद अर्थात दो पंक्तियाँ मिलकर एक सोरठा पूरा होता है। मगर सोरठा का उल्टा दोहा हो भी सकता है और नहीं भी।  

उदाहरण –
रहिमन नाय सुहाय, अमिय पियावत मान विनु।
जो विष देय पिलाय, मान सहित मरिबो भलो।।
ऽ  ।-।  ऽ-।  ।-ऽ-।   ऽ-।  ।-।-।  ।-।-ऽ  ।-ऽ
(५) कुण्डलिया
कुंडलिया छंद एक दोहा और उसके बाद दो रोला से मिलकर बनती है। आरम्भ में एक दोहा (दो पंक्तियाँ) और उसके बाद दो रोला (चार पंक्तियाँ) होतीं हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएँ होती हैं। दोहे का अन्तिम चरण अर्थात चौथा चरण ही पहले रोला का पहला चरण होता है। कुण्डलिया छन्द का पहला शब्द या वाक्यांश हीअंतिम शब्द या वाक्यांश होता है।

उदाहरण –
दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाऊँ न रहत निदान।।
ठाँऊ न रहत निदान, जयत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै।।
कह 'गिरिधर कविराय' अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत।।

(६) सवैया: यह कई प्रकार के होते हैं। जैसे

किरीट सवैया:
इस छन्द के प्रत्येक चरण में आठ भगण (211) होते हैं। इसमें वर्ण और मात्राओं की संख्या निश्चित होती है।
उदाहरण:
मानुष हौं तो’ वही रसखानि, बसौ ब्रज गोकुल गाँव के’ ग्वारन।
जो पशु हौं तो’ कहा बस मेरे’ चरों नित नन्द की’ धेनु मझारन।।
पाहन हौं तो’ वहीं गिरि को धरयों कर–छत्र पुरन्दर धारन्।।
जो खग हौं तो’ बसैरो’ करौं मिलि कालिन्द–कूल–कदम्ब की’ डारन।।

(७) कवित्त (घनाक्षरी):
यह वर्णिक छंद है इसमें मात्राओं को नहीं गिना जाता सिर्फ वर्णों को गिना जाता है। इस छन्द को दो पंक्तियों में लिखा जाता है। यह कई प्रकार के होते है: 
मनहरण घनाक्षरी:
इस छन्द में 31 वर्ण और चार चरण होते हैं जिन्हें समान्यतः दो पंक्तियों में लिखा जाता है। छन्द की गति को ठीक रखने के लिये 8, 8, 8 और 7 वर्णों के बाद यति का नियम है। कुछ लोग 16 और 15 वर्ण के बाद यति रखते हैं। मनहरण घनाक्षरी के अन्त में एक लघु-गुरू (1 2) वर्ण होना जरूरी है। चार छंदो को मिला कर पूरी घनाक्षरी बनती है।

मनहरण घनाक्षरी रचना विधान:

आठ-आठ-आठ-सात, पर यति रखकर,
मनहर घनाक्षरी, छन्द कवि रचिए।
लघु-गुरु रखकर, चरण के आखिर में,
'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिये॥
अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधार सम,
गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए॥
करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण-
'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए॥
दूसरा उदाहरण:
सत्ता जो मिली है तो, जनता को लूट खाओ,
मोह होता है बहुत, घूस मिले धन का |
नातों को भुनाओ सदा, वादों को भुलाओ सदा,
चाल चल लूट लेना, धन जन-जन का |
घूरना लगे है भला, लुगाई गरीब की को,
फागुन लगे है भला, साली-समधन का |
विजया भवानी भली, साकी रात-रानी भली,
चौर्य कर्म भी भला है, नयन-अंजन का ॥
*****
सहंकलित

उर्दू से हिन्दी संकलन

कुर्ब  =  नज़दीकी
फ़िराक  =  वियोग, बिछोह
तिशनगी  =  इच्छा, प्यास
शराब  =  भ्रम, मृगतृष्णा
संग-ए-मलामत  =  निंदा
वस्ल – मिलन
इसरार – जिद, हठ
दानाई – बुद्धिमानी
उफ़ुक़ – क्षितिज
पस-ए-दीवार-ए-चश्म = आँखों की दीवार के पीछे
क़ज़ा = मौत
अरमां=इच्छा
लिल्लाह= ईश्वर के लिए
दस्ते जनूँ= पाग़लपन
तारे गिरेबां =कंठी
रेहलत =महायात्रा, मृत्यु का समय
हैफ़=शोक
नातवानी=कमज़ोरी, दुर्बलता
नुमायाँ=सिर्फ़ दिखाई देने लायक, नाम भर को बाक़ी
हयात  – जीवन
आह-ओ-फ़ुग़ाँ – विलाप
बज़्मे-दुनिया    –  दुनिया की महफ़िल
इनायात  – मेहरबानी, कृपा
तल्ख़ी-ए हालात  –  हालात की कड़वाहट
निक़हत-ए-बाद-ए-बहारी=वसन्तकाल की सुगन्धित वायु
तसवुर= ध्यान
अर्श=आकाश
नक़्शपाए रहरवाँ=मुसाफ़िर के चरणचिन्हों की तरह
कू-ए-तमन्ना=अभिलाषाओं के कूचे में
उफ़तादगी=निर्बलता
सब्र-ओ-तहम्मुल = संतोष
नजीबों= कुलीन मनुष्यों
जमहूरियत  –  लोकतंत्र
रकाबी  –  प्लेट, थाली
महेज – केवल
लाज़िम-आवश्यक
आबे-रवा- बहते हुए पानी का
मुतमुइन-संतुष्ट
रविश -आचरण
ज़रूरतन-आवश्यकता होते हुए
सख़ी-दानदाता
आह-ओ-फ़ुग़ाँ – विलाप
बज़्मे-दुनिया    –  दुनिया की महफ़िल
मर्गे-नागहानी= अचानक मौत
सरगरानी=गुस्सा
मन्सब=मन्सूबा
सैराब=भिगोना
शादकाम=भाग्यवान लोग
तौफ़ीक=काबिलियत शादमानी=खुशी
तन्गामा-ए-दिले-मलाल=दुखी दिल के थोडे से हिस्से में
देहर-ए-हस्ती=ज़िन्दगी का समन्दर बेकरानी=असन्ख्य
कामरानी=सफ़लता निगारखाना=जहां बहुत लडकियां हों
पिन्हान=छुपा हुआ
खल्क=दुनिया
तारीके-इश्क=मोहब्बत का इतिहास
दौर=वक्त, समय
दरमियानी=बीच में
नौगुल=नया फ़ूल
नज़्म=नया बनाना
जौर=कहर
पा=पांव
सुपुर्दगी=समर्पण
तुर्कमानी=विद्रोही
अक्स-ए-जबीं-ए-नाज़=किसी प्यारे का चेहरा
नूर=प्रकाश
कहकशां=आकाश गंगा
ऐन= असलियत में
अजल - मौत
करम - कृपा
शयाने दर्द - दर्द का उपयुक्त
पशेमान - लज्जित
इस्सर - ईश्वर
तुलूए रात - रात का विस्तार
मिरे आफताब - सूरज
सहरा - रेगिस्तान
परीरूखाँ - परी जैसा चेहरा
गुलशन = बाग़, बगीचा
फ़क़त = केवल, मात्र, सिर्फ़ ज़ीनत = शोभा, श्रृंगार, सजावट
वाइज़-ऐ-नादाँ = नासमझ धर्मोपदेशक
ज़ब्त-ऐ-अलम = दुःख/कष्ट प्रकट न होने देना
फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ = विनती और आर्तनाद/दुहाई
नादाँ = नासमझ
तौहीन-ऐ-मोहब्बत = मोहब्बत का अपमान/ अनादर/ तिरस्कार
आशोब -चीत्कार, आर्तनाद ।
हर्फ़  =  अक्षर
गुफ़्तगू  =  बातचीत
सम’अतों  =  सुनने की शक्ति
ख़ुश-गुलू  =   अच्छी आवाज़ वाला
नोक-ए-ख़ार  =  कांटे की नोक
सेहरा  =  रेगिस्तान
जुस्तजू  =  खोज
रफू  = पैबंद
शोला - नवा =जिसकी आवाज़ में आग हो
सुकूत =मौन
सदा=आवाज़
बंदगाने-ख़ास=विशेष उपासक
ज़ौफ़-ए-बसारत= दृष्टि की कमज़ोरी
क़द-ओ-क़ामत =डील-डौल
नुक़्स-ए-आब-ओ-हवा= जलवायु का दोष
राह-ए-नजात  =मुक्ति का रास्ता
रज़ा-ए-ख़ुदा=  ईश्वरेच्छा, ईश्वर की इक्छा
दास्तान-ए-कर्ब-ओ-बला= असीमित दुखों की कहानी
निशान-ए-ज़िया =प्रकाश का चिह्न , रौशनी का निशान या अक़्स
सुकून-ए-जिस्म-ओ-जाँ-गिर्दाब-ए-जाँ = जीवन के भँवर में शरीर और मन की शांति
माहि-ए-बे-आब = जल बिन मछली
फ़सील = सीमा
दम-ब-ख़ुद = चुपचाप
चश्म-ए-हैराँ = आँखों का सोचना
ना-गहाँ = दुर्घटनावश
वुसअतों = विस्तार
मसाफ़त = यात्रा
राएगाँ = बे-मतलब, बेकार
सफीने – नाव
ऐलान-ए-गुमराही = पथ-भ्रष्ट होने की घोषणा
अलमिया = विडम्बना
तअल्लुक = सम्बंध)
क़याम = रुकना
रसा = पहुँच
तुलू = उत्पन्न
असासा-ए-जाँ = जीवन की पूँजी
गुरेज़ = छोड़ जाना
तलबगार= इच्छुक, चाहने वाला
ज़ीस्त= जीवन
लज़्ज़त= स्वाद
ख़ाना-ए-हस्त= अस्तित्व का घर
बेलौस= लांछन के बिना
फ़क़्त= केवल
नक़्श= चिन्ह, चित्र
अफ़सुर्दा= निराश
इबारत= शब्द, लेख
हाजित(हाजत)= आवश्यकता जो’फ़(ज़ौफ़)= कमजोरी, क्षीणता
गुल= फूल
ख़िज़ां= पतझड़
ख़ार= कांटा
महफ़ूज़= सुरक्षित
इनायत= कृपा
तलबगार= इच्छुक
अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़= निराशा और क्षीणता
क़ाफ़िर= नास्तिक;
दींदार=आस्तिक,धर्म का पालन करने वाला।
अंजुमन-आराइयों = महफ़िलों (parties)
लम्हा-ए-फ़ुसूँ = हसीं पल
रानाइयों = खूबसूरती
ख़्वाब-गूँ = स्वप्नमय
जराहत-ए-दिल = दिल की सर्जरी
तवील = लंबा
एतमाद = confidence
बादिया-पैमाइयों = हवा माप
अहद-ए-ख़ुद-सिपास = उम्र का आत्म प्रशंसा
पज़ीराइयों = दिलासा
एहतिराम = सम्मान, आदर, इज़्ज़त)
शेख़ = धर्माचार्य
बा-वज़ू होकर = नमाज़ पढ़कर
एहतिमाम = व्यवस्था, इंतिज़ाम, बंदोबस्त
बारिश-ए-रहमत-ए-तमाम = ईश्वरीय कृपा की अत्यधिक बरसात
ज़ेरे कदम –  कदमो के तले
रूह  –  आत्मा
उरियाँ – निवस्त्र , नग्न
अहद –  समय
मुलम्मा – सोने की परत
सरापा – सर से पैर तक
तल्ख़तर – कड़वी
पैहम – लगातार, निरन्तर
जिना  – अनुचित सम्बन्ध
शम्स-ओ-कमर –  सूरज और चाँद
हुक्काम – वो लोग जिनके पास अधिकार हो, अधिकारी वर्ग
रंगीलेशाह – एक अय्याश मुग़ल बादशाह
हम्माम – स्नानागार, बाथरूम
मह्व-ए-आईनादारी  =  आईने को पकड़ने में व्यस्त
बका  =  अमरता, स्थायित्व
ज़हर-ए-पारसाई  =  भक्ति के तहत
हर्फ़  =  कलंक
हरीफ़-ए-जाँ   =  जीवन की प्रतिद्वंद्वी
तान-ए-आशनाई  =  परिचित का ताना
मता-ए-महरूमी  =  अभाव की वस्तु
कासा-ए-गदाई  =  भिखारी का कटोरा
ख़ताओं -   ग़लतियों
ग़र्दिश -     विपत्ति, बुरे दिनों में भाग्य का फ़ेर
हैवां-हैवान- राक्षस , दुष्ट व्यक्ति
सदाएं-      पुकार
ग़मगीनियाँ - दुख़दायक स्थितियाँ
बेनूरियाँ -    ज्योतिहीनता -प्रकाश रहित
ज़ूद-फ़रामोश  =  जल्दी भूलने वाला
पादाश  =  जुर्म की सजा
गुलसितां = फूलो का देश