शुक्रवार, 10 जून 2016

कविता और तुकबंदी - संकलित

--------------कविता और तुकबन्दी ---------------
कभी-कभी मुझे लगता है कि आज का समाज दोगला चरित्र जीने का अभ्यस्त हो गया है और समाज में भी वो तथाकथित मंचीय रचनाकार जो बुद्धिजीवी होने का तमगा अपने सीने पर चिपका कर इतरा रहे हैं ।
आज पूरे विश्व में कवि सम्मेलन में उन कवियों या कवियत्रियों की पूँछ सर्वाधिक है जो कविता का सस्वर पाठ करके जनता जनार्दन को चमत्कृत कर देते हैं परन्तु घोर आश्चर्य है कि जिस कविता को गाकर उन्हें धन, यश, मान मिलता है उसी को तुकबन्दी बताते हुये उन्हें किंचित शर्म का अहसास नहीं होता यह उनकी कृतघ्नता का जीवंत उदाहरण है और बनते हैं बुद्धिजीवी ।
दूसरी और जो कविता से कोसों दूर व्यक्तव्य है जिसे छोटी बड़ी लाइनों में टुकड़े-टुकड़े करके लिखा गया है उसे कविता कला का प्रतिमान कहकर महिमा-मंडित करते हुये फूले नहीं समाते जैसे उस व्यक्तव्य को कविता कहकर उन्हें अमृतपान करने का मौका मिल गया हो ।
आज के दौर में उत्तरप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र बिहार जो विशुद्ध काव्य को जीने और पीने वाले क्षेत्र हैं उन क्षेत्रों के क्षेत्रज्ञ यह दोगलापन करने को विवस हैं पर उनकी विवसता बनावटी जान पड़ती है क्यों कि जन,  नई, आदि के द्वारा जो कविता के नाम और काम दौनों को नष्ट-भ्रष्ट करने का षडयंत्र कुत्सित मानसिकता वाले मार्क्सवादी या वामपंथियों ने किया उनकी वह विचारधारा जन सामान्य के द्वारा तिरस्कृत और वहिष्कृत हो चुकी है जिसका जीवंत उदाहरण ये है कि उन छिन्न-भिन्न लेखों (कविता नहीं कहूँगा) की असंख्य प्रतियों का बोझा उठाते-उठाते पुस्तकालयों की अलमारियाँ चरमरा गई पर उनको पाठक नहीं मिले मंच पर सुनाने की कोशिश की गई तो जनता ने सड़े हुये टमाटर और अपनी पादुकाओं से उनका जोरदार अभिनन्दन किया  ।
आज उसी विचारधारा के द्वारा कविता का वैभव देखा नहीं जा रहा है मुझे ये बहुत बड़ा षडयंत्र लग रहा है कि मंच पर कविता गाकर धन, पद, मान, माला, दुशाला लेलो पर मंच से नीचे उतरते ही उसे तुकबन्दी घोषित करते हुये शुद्ध कवियों की आलोचना करो उन्हें तुक्कड़ कहो और लिखित में उन टूटे-फूटे लेखों को विशुद्ध कविता कह कर सम्मानित करो पूरे के पूरे समाचार पत्रों के विशेषांक छाप कर उन तथाकथित स्वनामधन्य साहित्यकारों के श्री चरणों में समर्पित कर दो ।
बाबा के बाबा!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
कितना बड़ा षडयंत्र है शुद्ध कवि और कविता दोनों को अपदस्थ करने का ...........विचार करो
पर मैं पूर्ण रूपेण आशान्वित हूँ कि जन सामान्य के द्वारा तुलसी का मानस, कबीर के दोहे, रहीम रसखान के दोहे मीरा के पद भूषण के छन्द सूरदास के पद जगनिक के रासोंनीरज जी ब्रजेन्द्र अवस्थी  उर्मिलेश, हरिओम पंवार भारत भूषण गोपाल सिंह नेपाली विष्णु सक्सेना सोम ठाकुर प्रमोद तिवारी ओम प्रकाश आदित्य विनीत चौहान राजेन्द्र राजन कमलेश शर्मा सरिता शर्मा ज्ञानवती सक्सेना देवराज दिनेश दुष्यंत कुमार  आदि-आदि की कवितायें ही गुनगुनाई जायेंगी कुछ और नहीं ....समझे कि नहीं .............कृमश:...

(नोट-- यह जानकारी संकलित है, हो सकी तो अांगे कि उपलब्ध कराई जायेगी) धन्यवाद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें