शुक्रवार, 10 जून 2016

दोहा/छंद/सोरठा की संकलित जानकारी

---छंद /दोहा/सोरठा --

छंद शब्द का प्रथम उल्लेख  ऋग्वेद के पुरुष सुक्त के 9वें मंत्र में मिलता हैं। जहाँ इसकी उत्पत्ति "विराट यज्ञ पुरुष " से होना बताया गया हैं।

ब्रह्मा ने छंद ज्ञान बृहस्पति जी को दिया बृहस्पति ने च्वयन को च्यवन ने माडव्य मांडव्य ने सैतव को सैतव ने यास्क को और यास्क ने पिंगल जी को यह ज्ञान दिया।

पिंगल कृत "छंद सूत्र" छंद  शास्त्र"  का प्रथम ग्रंथ माना जाता हैं समय(700 ई पू)

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अब बात करें छंद के अर्थ
और  इसके सिद्धांतों पर:---

छंद -  अक्षरों की संख्या एवं क्रम ,मात्रा गणना तथा यति -गति के सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पघरचना ' छंद ' कहलाती है ! 

छंद के अंग इस प्रकार है - 

1 . चरण - छंद में प्राय: चार चरण होते हैं ! पहले और तीसरे चरण को विषम चरण तथा दूसरे और चौथे चरण को सम चरण कहा जाता है ! 

2 . मात्रा और वर्ण - मात्रिक छंद में मात्राओं को गिना जाता है ! और वार्णिक छंद में वर्णों को !  दीर्घ स्वरों के उच्चारण में ह्वस्व स्वर की तुलना में दुगुना समय लगता है ! ह्वस्व स्वर की एक मात्रा एवं दीर्घ स्वर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं ! वार्णिक छंदों में वर्णों की गिनती की जाती है !

3 . लघु एवं गुरु - छंद शास्त्र में ये दोनों वर्णों के भेद हैं ! ह्वस्व को लघु वर्ण एवं दीर्घ को गुरु वर्ण कहा जाता है ! ह्वस्व अक्षर का चिन्ह ' । ' है ! जबकि दीर्घ का चिन्ह  ' s ' है !         

= लघु - अ ,इ ,उ एवं चन्द्र बिंदु वाले वर्ण लघु गिने जाते हैं ! 

= गुरु - आ ,ई ,ऊ ,ऋ ,ए ,ऐ ,ओ ,औ ,अनुस्वार ,विसर्ग युक्त वर्ण गुरु होते हैं ! संयुक्त वर्ण के पूर्व का लघु वर्ण भी गुरु गिना जाता है ! 

4 . संख्या और क्रम - मात्राओं एवं वर्णों की गणना को संख्या कहते हैं तथा लघु -गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं ! 

5 . गण - तीन वर्णों का एक गण होता है ! वार्णिक छंदों में गणों की गणना की जाती है ! गणों की संख्या आठ है ! इनका एक सूत्र है - 

              ' यमाताराजभानसलगा '

इसके आधार पर गण ,उसकी वर्ण योजना ,लघु -दीर्घ आदि की जानकारी आसानी से हो जाती है ! 

      गण का नाम             उदाहरण           चिन्ह 

1 .  यगण                      यमाता              ISS

2    मगण                      मातारा             SSS

3 .  तगण                       ताराज             SSI

4 .  रगण                        राजभा            SIS

5 .  जगण                       जभान            ISI

6 .  भगण                       भानस            SII

7 .  नगण                       नसल              III

8   सगण                 सलगा            llS

6. यति -गति -तुक -  यति का अर्थ विराम है , गति का अर्थ लय है ,और तुक का अर्थ अंतिम वर्णों की आवृत्ति है ! चरण के अंत में तुकबन्दी के लिए समानोच्चारित शब्दों का प्रयोग होता है ! जैसे - कन्त ,अन्त ,वन्त ,दिगन्त ,आदि तुकबन्दी वाले शब्द हैं , जिनका प्रयोग करके छंद की रचना की जा सकती है ! यदि छंद में वर्णों एवं मात्राओं का सही ढंग से प्रयोग प्रत्येक चरण से हुआ हो तो उसमें स्वत: ही ' गति ' आ जाती है ! 

- छंद के दो भेद है - 

1 . वार्णिक छंद - वर्णगणना के आधार पर रचा गया छंद वार्णिक छंद कहलाता है ! ये दो प्रकार के होते हैं - 

क . साधारण - वे वार्णिक छंद जिनमें 26 वर्ण तक के चरण होते हैं ! 

ख . दण्डक - 26 से अधिक वर्णों वाले चरण जिस वार्णिक छंद में होते हैं उसे दण्डक कहा जाता है ! घनाक्षरी में 31 वर्ण होते हैं अत: यह दण्डक छंद का उदाहरण है ! 

2 . मात्रिक छंद - मात्राओं की गणना पर आधारित छंद मात्रिक छंद कहलाते हैं ! यह गणबद्ध नहीं होता 

अब दोहा छंद  समझते हैं ::---
2. दोहा - यह मात्रिक अर्द्ध सम छंद है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11 मात्राएँ होती हैं . यति चरण में अंत में होती है . विषम चरणों (प्रथम व तृतीय) के अंत में जगण (ISI) नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अंत में लघु होना चाहिए। सम चरणों में तुक भी होनी चाहिए। जैसे - ।

उदाहरण :--

हाथ जोड़ वंदन करूँ,भजूँ आपका नाम।
आप पधारो शारदे,पूर्ण करो सब काम।।
(अनमोल)

तारा बनकर जो जिए, मात-पिता का लाल।।
सारे जग में होय फिर, मात -पिता खुशहाल।।
      ( जिद्दी जी)

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अब आप सभी इस पर प्रयास करें। इसके बाद   सोरठा छंद पढेंगे
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छंद में गजलों की तरह मात्रा पतन नहीं होता हैं। इसमें । अतः शब्द में ही कुछ लघु गुरु को इधर उधर या फिर उसकी जगह अन्य उपयुक्त शब्द जोड़ा जाता हैं।
हालाँकि संस्कृत में ज़रूर हम चरणांत में आवश्यकता के अनुसार लघु गुरु कर  सकते हैं।

जैसे :-एक (2+1= 3)हम इसे इक (1+1=2) कर सकते हैं।
[10/06 07:23] Anujjjjjjh: आइए अब छंद चर्चा को आगे बढाते हुए बात करते हैं,"सोरठा "छंद की।

सोरठा - यह भी मात्रिक अर्द्धसम छंद है !इसके विषम चरणों (प्रथम व तृतीय) में 11मात्राएँ एवं सम चरणों में 13 मात्राएँ होती हैं !
इसमें  तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होती है !

इस प्रकार यह दोहे का उल्टा छंद है ! 

आइए एक उदाहरण से इसे और बेहतर  समझने का प्रयास करते हैं:--

दोहा:-
माँ की जो सेवा करे, वो हैं  पूत महान।
माँ के ही दर्शन भरें, जीवन में सुख शान ।।

अब इसे सोरठा में बदलते हैं:--

वो हैं पूत महान, माँ की जो सेवा करे।
जीवन में सुख शान,माँ के ही दर्शन भरें।।

एक और उदाहरण:--

विनायक महाराज को, सुमिरूँ मैं तो आज।
पूर्ण करों हर काज को,रखियों मेरी लाज।।

अब इसे सोरठा में बदलते हैं----

सुमिरूँ मैं तो आज,विनायक महाराज को।
रखियों  मेरी  लाज, पूर्ण करों हर काज को।।

[मित्रों , यहाँ मैंने सम और विषम दोनों चरणों को तुकमय रखा । हालाँकि ज़रूरी ऐसा ज़रूरी नहीं हैं, आपको बस पहले और तीसरे चरण को तुक में रखना बस बन गया  सोरठा छंद ।
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💐🌻🙏🏻  अनमोल 🙏🏻🌻💐

---सम्पूर्ण जानकारी संकलित है---

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