गजल में मात्रा भार व उसकी गणना
----------------------------------------------
भाग - 1
-----------------
मात्रा दो प्रकार की होती है
१- ‘एक मात्रिक’ इसे हम एक अक्षरीय व एक हर्फी व लघु व लाम भी कहते हैं और १ से अथवा हिन्दी कवि " | " से भी दर्शाते हैं
२= ‘दो मात्रिक’ इसे हम दो अक्षरीय व दो हरूफी व दीर्घ व गाफ भी कहते हैं और २ अथवा S । हिन्दी कवि S से दर्शाते हैं
एक मात्रिक स्वर अथवा व्यंजन के उच्चारण में जितना वक्त और बल लगता है दो मात्रिक के उच्चारण में उसका दोगुना वक्त और बल लगता है
ग़ज़ल में मात्रा गणना का एक स्पष्ट, सरल और सीधा नियम है कि इसमें शब्दों को जैसा बोला जाता है (शुद्ध उच्चारण) मात्रा भी उस हिसाब से ही गिनाते हैं
जैसे - हिन्दी में कमल = क/म/ल = १११ होता है मगर ग़ज़ल विधा में इस तरह मात्रा गणना नहीं करते बल्कि उच्चारण के अनुसार गणना करते हैं |
उच्चारण करते समय हम "क" उच्चारण के बाद "मल" बोलते हैं इसलिए ग़ज़ल में ‘कमल’ = १२ होता है
यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि “कमल” का ‘“मल’” शाश्वत दीर्घ है अर्थात जरूरत के अनुसार गज़ल में ‘कमल’ शब्द की मात्रा को १११ नहीं माना जा सकता यह हमेशा १२ ही रहेगा
‘उधर’- उच्च्चरण के अनुसार उधर बोलते समय पहले "उ" बोलते हैं फिर "धर" बोलने से पहले पल भर रुकते हैं और फिर 'धर' कहते हैं इसलिए इसकी मात्रा गिनाते समय भी ऐसे ही गिनेंगे
अर्थात – उ+धर = उ १ धर २ = १२
मात्रा गणना करते समय ध्यान रखे कि -
क्रमांक १ - सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं
जैसे – क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट ... आदि १ मात्रिक हैं
क्रमांक २ - अ, इ, उ स्वर व अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं
जैसे = अ, इ, उ, कि, सि, पु, सु हँ आदि एक मात्रिक हैं
क्रमांक ३ - आ, ई, ऊ ए ऐ ओ औ अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं
जैसे = आ, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि २ मात्रिक हैं
क्रमांक ४. (१) - यदि किसी शब्द में दो 'एक मात्रिक' व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे -
ह१+म१ = हम = २ ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा १ नहीं किया जा सकता है
जैसे – सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
४. (२) परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे – असमय = अ/स/मय = अ१ स१ मय२ = ११२
असमय का उच्चारण करते समय 'अ' उच्चारण के बाद रुकते हैं और 'स' अलग अलग बोलते हैं और 'मय' का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए 'अ' और 'स' को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२ होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा|
क्रमांक ५ (१) – जब क्रमांक २ अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन(१ मात्रिक क्रमांक १ के अनुसा:र) हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है
उदाहरण – “तुम” शब्द में “'त'” '“उ'” के साथ जुड कर '“तु'” होता है(क्रमांक २ अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “म” भी एक मात्रिक है (क्रमांक १ के अनुसार) और बोलते समय “तु+म” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता
इसके और उदाहरण देखें = यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
५ (१) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे – सुमधुर = सु/ म /धुर = स+उ१ म१ धुर२ = ११२
क्रमांक ६ (१) - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक २ अनुसार) तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता
जैसे = पुरु = प+उ / र+उ = पुरु = २,
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
६ (२) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा
जैसे –
सुविचार = सु/ वि / चा / र
= स+उ१ व+इ१ चा२ र१
= ११२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें