गजल की मात्रा भार व गणना
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भाग - 2
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क्रमांक ७ (१) - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को १ मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि १ मात्रिक है तो वह २ मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी २ मात्रिक ही रहता है ऐसे २ मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है
उदाहरण -
सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१
= सच् २ चा २ = २२
(अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता है)
आनन्द = आ / न+न् / द = आ२ नन्२ द१ = २२१
कार्य = का+र् / य = कार् २ य १ = २१ (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा र के जुडने पर भी दो मात्रिक ही
रहता है)
तुम्हारा = तु/ म्हा/ रा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२
उन्हें = उ / न्हें = उ१ न्हें२ = १२
७ (२) अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध स व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध स के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध स के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध स को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है
दोस्त = दो+स् /त= २१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है
इस प्रकार और शब्द देखें
बस्ती, सस्ती, मस्ती, बस्ता, सस्ता = २२
दोस्तों = २१२
मस्ताना = २२२
मुस्कान = २२१
संस्कार= २१२१
क्रमांक ८. (१) - संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१, मूत्र = २१,
८. (२) यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२
८. (३) संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं
उदाहरण =
प्रज्ञा = २२ राजाज्ञा = २२२,
८ (४) उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/क
= २१२१
( 'नु' अक्षर लघु होते हुए भी 'क्र' के योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार अ के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)
क्रमांक ९ - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को १ मात्रिक नहीं गिना जा सकता
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (२) नहीं गिन सकते यदि हमें २ मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में 'दुख' लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा
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मात्रा गणना के लिए अन्य शब्द देखें -
तिरंगा = ति + रं + गा = ति १ रं २ गा २ = १२२
उधर = उ/धर उ१ धर२ = १२
ऊपर = ऊ/पर = ऊ २ पर २ = २२
इस तरह अन्य शब्द की मात्राओं पर ध्यान दें
मारा = मा / रा = मा २ रा २ = २२
मरा = म / रा = म १ रा २ = १२
मर = मर २ = २
सत्य = सत् / य = सत् २ य २ = २१
असत्य = अ / सत् / य
= अ१ सत्२ य१ =१२१
झूठ = झू / ठ = झू २ ठ१ = २१
सच = २
आमंत्रण = आ / मन् / त्रण
= आ२ मन्२ त्रण२ = २२२
राधा = २२ = रा / धा = रा२ धा२ = २२
श्याम = २१
आपको = २१२
ग़ज़ल = १२
मंजिल = २२
नंग = २१
दोस्त = २१
दोस्ती = २१२
राष्ट्रीय = २१२१
तुरंत = १२१
तुम्हें = १२
तुम्हारा = १२२
जुर्म = २१
हुस्न = २१
जिक्र = २१
फ़िक्र = २१
मित्र = २१
सूक्ति = २१
साहित्य = २२१
साहित्यिक = २२२
मुहावरा = १२१२
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